Thursday, 7 January 2016

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तबाही मचाने के लिए एक साल के अंदर एटम बम खरीद लेगा ISIS!

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नई दिल्ली। उत्तर कोरिया को परमाणु बम देने वाला पाकिस्तान एटम बम का ब्लैक मार्केट क्यों और कैसे बना जब ये जानने की कोशिश की जाती है तब सामने आता वो अंडरवर्ल्ड जिसमें पाकिस्तान ही नहीं कई हथियार सौदागार-विदेशी कंपनियां और तस्करों का नेटवर्क सामने आता है। ये अंडरवर्ल्ड अब तबाह हो चुका है लेकिन सवाल ये है कि क्या इस अंडरवर्ल्ड का कोई पुराना सूत्र पकड़ कर आईएसआईएस भी एटम बम हासिल कर सकता है?
ये मानने वालों की कमी नहीं कि पाकिस्तान ने जैसे दुनिया के सबसे सनकी तानाशाह के हाथ में परमाणु बम दे दिया वैसे ही दुनिया के सबसे खूंखार, सबसे बेरहम आतंकी संगठन आईएसआईएस की बम पाने की हसरत में जरिया बन सकता है। आशंका की वजह है साल 2015 में आईएसआईएस के मुखपत्र दाबिक में छपे लेख में दावा किया गया कि आईएसआईएस एक साल के अंदर एटम बम खरीद लेगा। ये बम भ्रष्ट पाकिस्तानी अफसरों से जुड़े हथियार सौदागरों से मिलेगा।
तबाही मचाने के लिए एक साल के अंदर एटम बम खरीद लेगा ISIS!

 

ये मानने वालों की कमी नहीं कि आईएसआईएस किसी जोड़-तोड़ से एटम बम ना सही लेकिन ऐसी परमाणु सामग्री पा सकता है, जिसका खतरनाक इस्तेमाल संभव है। वैसे सत्ता पर हावी भ्रष्ट और कट्टर जेहादी जनरलों की वजह से एटम बम कभी गलत हाथ में पड़ जाए तो ताज्जुब भी नहीं होना चाहिए। पाकिस्तान का अतीत तो यही कहता है। दरअसल,1971 की जंग में भारत से मिली करारी हार के बाद 20 जनवरी 1972 को जुल्फीकार अली भुट्टो ने पाकिस्तान का एटमी कार्यक्रम शुरू किया। लेकिन दो साल के बाद ही भारत ने परमाणु विस्फोट कर सबको चौंका दिया।
इसके बाद गैस सेंट्रीफ्यूज बनाने वाली नीदरलैंड की कंपनी एनरेको में काम करने वाले मेटल इंजीनियर अब्दुल कादिर खान-सेंट्रीफ्यूज की डिजाइन चुरा कर पाकिस्तान चला आया। चीन ने भी छुपकर मदद दी, और चोरी-स्मगलिंग वाला पाकिस्तान कार्यक्रम एटमी ब्लैक मार्केट में बदल गया।
एटमी ब्लैक मार्केट के अंडरवर्ल्ड में बहुत सी कंपनियां थीं, आतंकी भी पैसा देकर परमाणु तकनीक खरीदने की कोशिश करने लगे। तब अमेरिका की आंख खुली-पाकिस्तान पर दबाव पड़ने लगा तब हुक्मरानों ने खुद को बचाने के लिए एक्यू खान को बेनकाब कर दिया। 4 फरवरी 2004 को एक्यू खान ने मजबूरी में गुनाह स्वीकार कर लिया। मगर, हाल ही में ईरान के पूर्व राष्ट्रपति अकबर हाशमी रफसंजानी ने माना है कि 80 के दशक में पाकिस्तान ने ईरान को भी परमाणु तकनीक दी थी। कादिर खान ने भी अपने खिलाफ चली जांच के दौरान बताया था कि ईरान ने तीन परमाणु बम के लिए 10 अरब डॉलर की पेशकश की थी। बातचीत जिया उल हक के शासन में शुरू हुई और बेनरजीर भुट्टो के शासन तक चलती रही। जाहिर है इस ब्लैक मार्केट में हुक्मरान भी शामिल थे।

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