भारत-पाक के बच नए टकराव की आशंका?
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आज़ादी के 68 साल
गुज़र जाने के बाद गिलगित-बल्टिस्तान एक बार फिर से चर्चा में है, क्योंकि
पाकिस्तान इसकी संवैधानिक स्थिति को बदलने की तैयारी कर चुका है.
2009 में 'जीबी'(गिलगित-बल्टिस्तान) में अपनी विधानसभा बनाई गई थी. यह पाकिस्तान की एक योजना के मुताबिक़ किया गया ताकि इस क्षेत्र को एक संपूर्ण प्रांत बनाया जा सके.
लेकिन यह मुद्दा केवल पाकिस्तान का ही आंतरिक मामला नहीं है.
भारत दावा करता रहा है कि 'जीबी' जम्मू-कश्मीर राज्य का भाग है और यह भारत का अभिन्न हिस्सा है.
कश्मीर के नेता भी पाकिस्तान के इस क़दम का विरोध कर रहे हैं. अगर पाकिस्तान ऐसा करता है तो यह जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान के रुख़ में एक बड़े बदलाव का संकेत है. इसके अलावा इस तरह के फ़ैसले से भारत के साथ उसका टकराव भी बढ़ेगा.
चीन ने इसके लिए सड़क, राजमार्ग, रेल नेटवर्क, आर्थिक क्षेत्र और ऊर्जा परियोजनाएं बनाने के लिए पाकिस्तान के साथ कई समझौते भी किए हैं.
'जीबी' क्षेत्र 3000 किलोमीटर के सीपीईसी मार्ग का एक प्रमुख हिस्सा है. यह पश्चिमी चीन के ज़िंगजियांग प्रांत के काशगर शहर और अरब सागर के किनारे स्थित दक्षिणी पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को आपस में जोड़ता है.
रिपोर्ट के मुताबिक़ चीन ने खुले शब्दों में चिंता जताई है कि वह एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवादित क्षेत्र में ऐसी परियोजनाओं पर अरबों डॉलर का निवेश नहीं कर सकता.
चीन सीपीईसी परियोजना से पीछे न हट जाए, इसलिए अब पाकिस्तान 'जीबी' के संवैधानिक दर्जे को बदलकर उसे एक प्रशासी क्षेत्र से एक पूर्ण प्रांत बनाना चाहता है. इस तरह से 'जीबी' प्रांत क़ानूनी तौर पर सुरक्षित हो जाएगा, जैसा चीन चाहता है.
दूसरी तरफ भारत 'जीबी' क्षेत्र के साथ ही कश्मीर के पाकिस्तान प्रशासित क्षेत्रों को जम्मू-कश्मीर राज्य का अभिन्न हिस्सा बताता है.
पिछले साल सीपीईसी परियोजना का ऐलान होने के बाद ही भारत इसकी आलोचना कर चुका है. भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इसे 'अस्वीकार्य' कहा था.
'जीबी' के दर्जे में बदलाव के हाल के फ़ैसले ने भी भारत को कड़ा विरोध करने के लिए उकसाया है.
14 जनवरी को भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने इस मुद्दे पर भारत का आधिकारिक पक्ष रखा था. उनके मुताबिक़ यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि जीबी 'भारत का अभिन्न हिस्सा' था. उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में संसाधनों का दोहन करने से भारत नाराज़ है.
भारत इस बात से भी चिंतित है कि सीपीईसी की वजह से इस क्षेत्र में चीनी सेना की मौजूदगी भी बढ़ेगी. भारत के मुताबिक़ ऐसा लगता है कि चीन और पाकिस्तान का 'सीपीईसी' भारत के क्षेत्रीय दावे को दबाने की एक कोशिश है.
भारत के विरोध के अलावा, ये विवाद पाकिस्तान और भारत दोनों के प्रशासित कश्मीरी क्षेत्रों के विपक्ष को भड़काने वाला कदम है.
भारत प्रशासित कश्मीर की आज़ादी का समर्थन करने वाले नेताओं का भी कहना है कि इस क़दम से भारत सरकार भी कश्मीर के विशेष दर्जे को ख़त्म कर देगी और इसे पूरी तरह से भारतीय राज्य बना लेगी. पाकिस्तान के कश्मीरी नेताओं का कहना है कि अगर ऐसा होता है तो वह चीन और पाकिस्तान दोनों के लिए ख़तरनाक होगा.
उससे भी बड़ी बात यह है कि यह कदम पूरी तरह से कश्मीर को लेकर पाकिस्तान के दृष्टिकोण के विपरीत है. पाकिस्तान मानता रहा है कि कश्मीर समस्या का समाधान वहां संयुक्त राष्ट्र के 1948-49 प्रस्ताव के मुताबिक़ जनादेश करवाकर हो सकता है.
दूसरी तरफ भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध पहले से ही तनावपूर्ण और नाज़ुक दौर में है.
भारत और पाकिस्तान पहले भी कश्मीर को लेकर दो बार युद्ध कर चुके हैं और गिलगित-बल्टिस्तान क्षेत्र के दर्जे को बदलने की कोई भी कोशिश एक बड़े विवाद में बदल सकती है, जो इस क्षेत्र की स्थिरता के लिए ख़तरा बन सकता है.
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