Friday, 29 January 2016

आसान नहीं है यौनकर्मी की बेटी होना...

  • 29 जनवरी 2016
भारत के तीसरे सबसे बड़े रेड लाइट एरिया कमाठीपुरा में सेक्स वर्करों की कई बस्तियां हैं.
इन बस्तियों में काम कर रहीं अधिकतर यौनकर्मी हालात से हार मानकर ख़ुद को नियति के हवाले कर चुकी हैं.
लेकिन कुछ लोग हार नहीं मानते और इसकी मिसाल हैं शीतल जैन, कविता होसमनी, पिंकी शेख़ और श्वेता कुट्टी जैसे नाम जो कमाठीपुरा की अंधेरी, बदनाम गलियों में अपनी कला से उजाला फैलाने की कोशिश कर रहे हैं.
ये उन लड़कियों की कहानियां हैं जो बदनाम बस्तियों में गुम अपनी और अपने जैसी दूसरी यौनकर्मियों की बेटियों को कला के माध्यम से जीने का नया ज़रिया सिखा रही हैं.
21 साल की शीतल जैन ढोल बजाने में माहिर हैं. एक ग़ैर सरकारी संस्था (एनजीओ) की मदद से वो अमरीका से इसकी ट्रेनिंग लेकर आई हैं.
शीतल बताती हैं, ''यौनकर्मी की बेटी होना आसान नहीं है, अपनी मां को अलग-अलग मर्दों के साथ देखकर अजीब लगता था.''
वो बताती हैं, ''मेरी मां ने अपने एक ग्राहक के साथ शादी भी की, लेकिन उस आदमी ने मेरे साथ बलात्कार किया और मुझे लगा था कि मैं भी इसी दलदल में फंस जाऊंगी.''
लेकिन 15 साल की उम्र में शीतल एक ग़ैर सरकारी संस्था से जुड़ीं और इस संस्था ने ड्रम बजाने की उनकी क्षमता को देखकर उन्हें ट्रेनिंग के लिए अमरीका भेजा. आज शीतल न सिर्फ़ पुणे के ताल स्कूल में ड्रम सीख रही हैं, बल्कि वो कमाठीपुरा में रहने वाली लड़कियों को ड्रम बजाना सिखा भी रही हैं.
शीतल कहती हैं, ''ज़िंदगी में जितने तरह के शोषण से मैं गुज़री हूं, उन सबका गुस्सा मैं ड्रम बजाकर निकालती हूं. अपनी इस ढोल बजाने की कला को मैं दुनिया भर में दिखाना चाहती हूँ. इसके साथ ही इस कला की मदद से अपनी तरह कमाठीपुरा में रहने वाली दूसरी लड़कियों की ज़िंदगी में भी सुधार लाना चाहती हूँ.''
ऐसी परीकथा जीने वाली शीतल अकेली नहीं हैं, 20 साल की कविता होसमनी और श्वेता कुट्टी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है.
कविता और श्वेता ने अमरीका के बार्ड विश्वविद्यालय के विशेष कार्यक्रम में हिस्सा लिया, जो यौनकर्मियों के बच्चों के लिए बनाया गया था.
इस कार्यक्रम के तहत उन्हें संगीत और गायिकी की तालीम मिली और वर्ल्ड क्रूज करने का मौका मिला.
कविता कहती हैं, ''15 देशों से आए यौनकर्मियों के बच्चों के साथ 114 दिनों का टूर था. जिसके तहत हम अमरीका, मैक्सिको, जापान और इंग्लैंड जैसे कई देशों में गए और उनका संगीत सीखा.''
इस अनुभव के बाद वो ख़ुद को बदला हुआ मानती हैं और बॉलीवुड में गायिकी के लिए वो कमर कस रही हैं.
वहीं श्वेता कुट्टी को इस प्रोग्राम के बाद 28 लाख़ रुपए की छात्रवृत्ति मिली, जिसे वो अपनी जैसी दूसरी लड़कियों की भलाई के लिए ख़र्च करना चाहती हैं.
श्वेता कहती हैं, ''हमारी पहली कोशिश होती है कि अपनी मां को इस धंधे से बाहर निकालें, क्योंकि यह ऐसा नरक है जो बाहर से नहीं दिखता लेकिन हम इसे हर रोज़ जीते हैं.''
इस नर्क का शिकार बनी पिंकी शेख़ भी अपनी तकलीफ़ को आज अपने हुनर से हराने की कोशिश में हैं.
वो कहती हैं, ''मैं किसी यौनकर्मी की बेटी नहीं, बल्कि ख़ुद सेक्स वर्कर रही हूं, लेकिन अपनी इच्छा से नहीं, मजबूरी से.''
15 साल की उम्र में कोलकाता में घरेलू यौन हिंसा से बचकर मुंबई भाग कर आई पिंकी कमाठीपुरा कब पहुंच गई उन्हें पता ही नहीं चला.
लेकिन आज 19 साल की उम्र में वो अपनी अभिनय क्षमता से अपना और अपनी जैसी दूसरी लड़कियों का जीवन बदलने की कोशिश कर रही हैं, ''मैंने अमरीका में कमाठीपुरा की लड़कियों की ज़िंदगी पर बने एक नाटक में हिस्सा लिया.''
वो बताती हैं, ''पहली बार देश के बाहर जाने का मौका मिला और शायद पहली बार इज्जत भी मिली. इस नाटक के चलते ही मुझे अमरीका के बाद जापान, वियतनाम, रूस और इटली जैसे देशों में जाने का मौका मिला.''
पिंकी अब कमाठीपुरा में मौजूद दूसरी यौन कर्मियों और उनकी बेटियों को अभिनय सिखाती हैं लेकिन अभिनेता होने के साथ-साथ वो एक ज़बरदस्त तैराक भी हैं.
वो कहती हैं, ''इन दिनों मैं तैराकी सीख रही हूं आगे चलकर तैराकी को ही अपनी करियर बनाना चाहती हूं.''
हालांकि इन लड़कियों की ज़िंदगियों को बदलने में विभिन्न ग़ैर सरकारी संस्थाओं ने मदद पहुचाई है, लेकिन ये महिलाएं अब मदद के हाथ को कमाठीपुरा की उन गहरी संकरी गलियों में पहुंचा रही हैं जहां कोई संस्था या बाहरी नहीं पहुंच सकता अगर वो ग्राहक नहीं हैं.
 

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